कल कुछ भी नही लिखा , आज भी नया कुछ नही है , सोचा की पुरानी दिअरी से झांक रही कुछ पंक्तियों को ही निकल के आने का मौका दिया जाए । कब लिखा था याद नही , क्यों क्यों लिखा था यह बता कर उस कविता का जादू भंग नही करना चाहूँगा । कई बार आप इखते हुए ख़ुद से बातें करते है कई बार किसी और से , और कई बार कितने ही आजीब आजीब काम करते । जीवन एक ही कविता को दोबारा लिखने का मौका क्यों नही देता है ?
तो कल रात आप फिर नही सोए ,
वही पुराने तारों को देखते रात गुजारी ,
आया वो तेरा चाँद
नही ना !
नही आएगा ।
वो भी कहीं तेरा इंतज़ार कर रहा था ,
कहीं किसी बद्री मैं छुपा
किसी झाडी मैं फंसा ,
झाडी मैं काँटों का ,
डर तो उसे भी लगा होगा
बदल मैं अंधेरे का ।
क्या सोचता है
की वो दिन मैं सोया होगा ,
तेरे बिन वो अंगडाइयां ले रहा होगा ,
बदल रहा होगा वो करवटें बार बार ,
इस धुप के बाद भी कोशिश करता है तुझे देखने की ।
तू भी बड़ा जालिम है ,
रात भर तो जागेगे
और फिर ख़ुद ही गायब हो जायेगा ।
देख उसे
कितनी तपिश झेल रहा है
रात दिन तेरी ही राह देख रहा है ।
उसे देखकर लगता ही नही की चैन मिला है ।
अब तो वोह तेरी ही तरह दिखने लगा है ,
तेरे ही रंग मैं रंगने लगा है ।
तेरी हर याद है उसके ज़हन मैं
वो याद करता है ,
तेरा वो गिर गिर के संभालना ,
वोह संभल संभल के गिरना ।
वोह रूठ रूठ के बिगड़ना ,
वोह बिगड़ बिगड़ के रूठना
वो एक कहने पे सारी बातें कहना ,
वो तेरा दर्द देके उसको रुलाना ,
वो रूठना मानना ,
वो बातें बनाना ,
वो अपना बता के दूजों से मिलाना
वो तेरा बातें बदलना
वो बातें घुमाना ।
एक तू है जिसे कुछ याद ही नही सिवा उसकी याद के ,
तुझे याद है तुने किया था कुछ वादा ,
क्या था वो तेरा इरादा ,
कहा था बीत न पायेगा ये खुशनुमा मौसम ,
अब कहता है फिर आएगा वो मौसम ,
तेरी इसी वादा खिलाफी से वो परेशान है ,
फिर भी वो कहता है तू मेरी जान है ।
मैंने उससे भी बात की है
वो कहता है 'उसके सिवा कुछ समझ नही पता ,
वो तो दिल मैं रहने वालों को नही समझ पता '
कुछ और रातें बाकी हैं अब वो ना सोएगा ,
पर ये मत समझना की वो कभी रोएगा ,
दिल मैं जगह तो तेरे बना ही ली है ।
मुकाम जो पाना था वो पा ही लिया है , अब क्या फर्क पड़ता है साथ न होने का ।
नशा और खुमारी तो छा ही गई है , गम नही जाम हाथ न होने का ।
जाने क्यूँ लगता है की तुझे गम ही नही ,
पर तेरे सेहरा मैं तो आंसू मुझे दीखते कम नही ,
अब तो मैं भी आँख मिचौली से अंग आ गया हूँ ,
तेरी इन बातों पे तेरे संग आ गया हूँ ।
"कर अगर कुछ तो मिटने की आस रख ,
कहाँ मिली है किसी नदी को समंदर से बेवफाई । "
फिर मिलेंगे !
5 टिप्पणी
बढ़िया है, जरुर मिलेंगे फिर.
Posted on June 29, 2008 at 3:55 AM
ekdum jhakas bhai, age raho.
maja aa gaya.
Posted on June 29, 2008 at 12:12 PM
sundar rachana ke liye badhai. jari rhe.
Posted on June 29, 2008 at 2:33 PM
बहुत खूब. "जीवन एक ही कविता को दोबारा लिखने का मौका क्यों नही देता है ?" बहुत खूब. शुक्रिया. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
Posted on June 29, 2008 at 7:54 PM
Jaise ki ek phool, ek baar hi khilata hai...waise hi ek mauka to ek baar hi aata hai!.....afassos ki hum kuchh nahi kar sakaten!... vaichaarik prishthhbhoomi ki sunder kavita!
Posted on June 30, 2008 at 2:40 PM