चलो अब दूर चलें

द्वारा मयूर On 11:26 PM

एक सप्ताह से ऊपर हुआ आखिरी पोस्ट लिखे हुए ,कारण भी आप लोगों को बताना चाहूँगा ,मैं पिछले दिनों मुंबई और पूना शहर गया था ,वहां आगे की पढ़ाई की संभावनाओं को करीब से देखने ,मुझे जाते समय कई लोगों ने कहा था की मुंबई से तो पूना ही अच्छा है ,पर मेरी पूरी यात्रा के बाद मुझे तो मुंबई पसंद आया । मुझे मुंबई शहर की रंगत ,जीवटता और गति अच्छी लगी । पूना थोड़ा रूखा शहर लगा ,शायद मैंने ज्यादा ध्यान से नही देखा क्योंकि मुझे वहां के लोग बिल्कुल भी पसंद नही आए ,सच कहूँ तो थोड़ा बेईमान शहर लगा ,शहर को देखकर लगा की लोगों ने शहर को उतना नही दिया जितना शहर ने उन्हें।


खैर मेरा अभी तक कहीं सेलेक्शन नही हुआ ,मैं ऍम बी ऐ करना चाहता हूँ ,आप ओग कोई राय देना चाहें तो आमंत्रित है । अब विचार है की कुछ नही हो पता है तो IGNOU से masters in economics करूँगा ,कोर्स शानदार है ,मेरा इंटरेस्ट भी है । एक कविता भी है ज़रूर पड़ें



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चलो अब दूर चलें ,

होने अब हम बे नूर चलें ।
रंग रोगन को हम भी छोडेंगे ,


अलविदा कहने से पहले दूर चलें ।


आओ अंधेरे को हम भी ढूँढेंगे ,


चिराग हाथ मैं लिए बहुत दूर चलें ।


चिराग बुझ ना सके की अँधेरा मिल जाएगा ,


चलो ज़ख्म को बनाने नासूर चलें ।


किसी कोने मैं चल के बैठेंगे ,


किसी आहट से सहमे बैठेंगे ।


सबको भुलाने बदस्तूर चलें ,


चलो अब दूर बहुत दूर चलें ।


चलो के चल के ही मिट जायेंगे ,


कभी रुक ना जाना की थक जायेंगे ।


वापस ना तेरे घर ना मेरे घर जायेंगे ,


कोई ना दिखे इतने दूर चलें ।

चलो अब दूर चलें
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3 टिप्पणी

  1. बहुत शुभकामनाऐं...आप अपने सपने पूरे कर पायें.

    Posted on July 14, 2008 at 7:15 AM

     
  2. बहुत अच्छे भावः लगे आप की कविता में....लिखते रहिये.
    पूना निश्चय ही अध्ययन की दृष्टि से रहने की दृष्टि से मुंबई से बेहतर है. आप का अनुभव क्यूँ ख़राब रहा नहीं कह सकता लेकिन कुछ दिन यहाँ रहेंगे तो ये शहर आप को अपना लेगा...इस शहर में सांस्कृतिक गतिविधियाँ अधिक हैं और भाग दौड़ कम.
    नीरज

    Posted on July 14, 2008 at 5:30 PM

     
  3. achhe bhav ke sath likhi gai hai. jari rhe.

    Posted on July 16, 2008 at 8:16 PM